शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
Missing Boy Himanshu
Name - Himanshu Kasyap S/O Vinod Kasyap
Address - Berket Coloney, Hanumangarh Town
Missing Date- 27-11-2010
If You Saw him, Tell this Contact No:-
01552-222026 (Town Police Station)
01552-230254 (Dainik Ibadat)
01552-261105 (Control Room Police)
सोमवार, 27 सितंबर 2010
नशे की बुराई से जुझती श्रीगंगानगर पुलिस
श्रीगंगानगर। कहते हैं कि जहाँ धन, सम्पदा एकत्रित होती है तो वह कुछ बुराईयां भी अपने साथ लाती है। कुछ ऐसा ही हुआ है राजस्थान के सबसे अधिक राजस्व आय वाले कृषि प्रधान जिले गंगा नगर में। गत वर्षों में ज्यों-ज्यों इस जिले ने शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में तरक्की की रफतार पकडी त्यों-त्यों जिले के सभी आयु वर्ग के लोगों में नशीले पदार्थों यथा गांजा, चरस, पोस्त, शराब, गुटखा, जर्दा, व नशीली दवाईयों जैसे गोलियां कैप्सूल और कफ सिरप व यहाँ तक कि व्हाईट फल्यूइड का इस्तेमाल नशे के विकल्प के रूप बढता गया है। हालात यह है कि आज हजारों घरों के लाखों युवक, युवतिया व स्कूलों में पढने वाले विधार्थियों के चोरी छिपे नशे के आदी होने के कारण परिवारों में अनेक प्रकार की समस्याएं व विवाद बढते जा रहे हैं। नशे की इस बढती प्रवृति से युवाओं में उच्छखंलता व उन्माद बढा है। नशे की प्रवृति के चलते अनेक युवा अपना बेशकीमती जीवन गंवा चुके हैं व हजारों परिवार बर्बादी की राह पर है। अनेक घरों में जहाँ बुढे माँ-बाप का एक ही नौजवान सहारा है वह भी नशे की लत के चलते जीवन को तबाह करने से नहीं चूक रहा है। जिले के युवाओं की हालत ऐसी खराब हो चली है कि वे किसी की सुनने को ही तैयार नहीं है।
क्यों करते हैं नशा
इस क्षेत्र में नशाखोरी के शिकार लोगों में एक आम धारणा व्याप्त है कि इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्वि होती है व नशा करने के बाद वे तनाव मुक्त महसूस करते है इसके अलावा अधिकांश नशाखोर लोगों का मानना है कि इससे उन्ह एक अलग तरह के आनंद की प्राप्ति होती है।इसके अलावा इस जिले के लोगों के सामाजिक, आर्थिक रिश्ते पंजाब के लोगों की जीवन शैली से भी प्रभावित है। पंजाब में शराब, पोस्त आदि को बुरी लत नहीं माना जाता व इन चीजों का सेवन वहाँ अधिकांश लोग अपने बच्चों व बडों के सामने करते हैं। बच्चे कतुहलवश व अज्ञानतावश भी नशे की आदतों के शिकार हो जाते हैं। इस परिवेश का फैलाव इस जिले में भी हो गया है रही सही कसर जिले में छायी पॉप संस्कृति ने पूरी कर दी है आम तौर पर जिले में होने वाली शादिय, समारोहों व अन्य पार्टियों में शराब व अन्य नशे की चीजो का खुल कर इस्तेमाल होता है।
जिले की सीमा पाकिस्तान से लगी होने के कारण भी मादक पदार्थों के अवैध कारोबारी तस्करी कर इन चीजों की आपूर्ति अपने गुर्गों के माध्यम से करते हैं। इसके अलावा बच्चों व युवाओं में शराबखोरी व अन्य नशे की चीजों के सेवन के पीछे कारण उनके माँ-बाप या अन्य परिजन भी हैं क्योंकि जब इस आयु वर्ग के लोग अपने परिजनों, सगे-सम्बधियों को नशे की चीजों का सेवन करत हुए देखते हैं तो धीरे-धीरे वे भी इन चीजों के सेवन के शौकीन हो जाते हैं। जब वे नशे के आदी हो जाते हैं तो वे अनुचित योन व्यवहारों में भी श्शरीक होने लगते है। नीम-हकीम भी इन नशे के आदियों व युवाओं को पौरूष बढाने के नाम पर नशे की चीजें परोसते हैं। नशे की प्रवुति के शिकार लोगों में 4॰ पतिशत से अधिक लोग 16 वर्ष से उपर की आयु के हैं। सुत्र बताते हैं कि इस आयु के लोग जिले के विभिन्न साईबर कैफे व अन्य सुत्रों से अश्लील फिल्में देखते हैं व उन्मुक्त यौन व्यवहार को बढावा देने वाला साहित्य पढते हैं। इन सब से जागृत कुंठाओं की पूर्ति के लिए भी युवा पीढी नशे का शिकार हो रही है।
जिले की भौगोलिक परिस्थितियां
श्रीगंगानगर जिले की भौगोलिक परिस्थिति कुछ ऐसी है कि यह नशीली वस्तुओं के अवैध कारोबारियों, तस्करों के लिए एक महफूज जगह बन गया है। जिले की एक सीमा पाकिस्तान से लगती है तो दूसरी सीमा पजांब से लगती है। इस कारण इस जिले में पाकिस्तान व पंजाब के रास्ते से होकर अनेक प्रकार के मादक पदार्थ युवाओं के हाथ में बेरोक-टोक पहच रहे हैं।
जिला पुलिस के सराहनीय कदम
परन्तु जिला पुलिस ने भी नशे की इस बुराई से जुझने व युवक-युवतियों को नशे की लत से छुटकारा दिला कर फिर से हँसता-खेलता सामान्य जीवन जीने की राह दिखाने के लिए सन् 1992 से कमर कस रखी है। जिला पुलिस ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से एक विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ॰ रविकान्त गोयल की सेवाएं लेकर एक नशा मुक्ति केन्द्र चला रखा है। डॉ॰ रविकान्त गोयल ने तो मानों इन नशा मुक्ति शिविरों को जीवन का एक अभिन्न अंग ही बना लिया है। जिले के नागरिकों के दर्द को उन्होंने अपने सीने से लगा रखा है व वे हमेशा ऐसे शिविरों की रूपरेखा में ही व्यस्त रहते हैं। इस केन्द्र के अधीन जिला पुलिस के सभी छोटे-बडे अधिकारियों ने एकदम सकारात्मक भाव के साथ समर्पित होकर अभी तक 1॰ दिवसीय 38 आवासीय कैम्प लगाये हैं जो कि एक मिसाल है।
इन आवासीय नशामुक्ति शिविरों का आयोजन पुलिस अधिकारी व कर्मचारी व अन्य विभागों के अधिकारी जन सहयोग से करते हैं। नशे के आदी लोगों को 1॰ दिन तक केन्द्र में उपाचाराधीन रखा जाता है। इस शिविर में आने वालों के आवास व भोजन की व्यवस्था केन्द्र द्वारा जन सहयोग से की जाती है ं। अभी तक 4॰, ॰॰॰ से अधिक युवक, युवतियां व अन्य आयु वर्ग के लोग इन शिविरों से लाभ उठा चुके हैं। जिले में जो भी पुलिस अधीक्षक आये, सभी ने इस जिले को नशामुक्त बनाने के लिए दिल से प्रयास किये व हजारों लोगों की जिन्दगी व उनके परिजनों को फिर से आशा की किरण दिखाई है।
चाहे वे सुधीर प्रताप सिंह, लक्ष्मण मीणा, के.नरसिंहराव, वी.के. गोदिका, आलोक त्रिपाठी, रवि प्रकाश मेहरडा, आर.पी. सिंह, चुन्नी लाल, यू.आर साहू, सुनील दत्त, सौरभ वास्तव, विनिता ठाकुर, आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता या वर्तमान में पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थापित रूपिन्द्र सिंह हों सभी ने नशे जैसी बुराई से लडने में कोई कसर नहीं छोडी। जिला पुलिस के इस अभिनव प्रयत्न में क्षेत्र के सभी वर्गों की जन सहभागीदारी भी प्रशंसनीय है। पुलिस अधिकारियों व जनता की भागीदारी से श्मात्र शिविरों से श्शुरू हुआ यह अभियान एक बडा रूप ले चुका है। 1996 में जब के. नरसिंहराव जिले के पुलिस अधीक्षक थे, तब उनके प्रयासों से स्थायी नशा मुक्ति केन्द्र की स्थापना की गई।
यधपि जिला पुलिस ने समय-समय पर अनेक बार सघन अभियान चला कर नशाीली दवाएं व अन्य मादक पदार्थ इनके अवैध कारोबारियों से बरामद किये हैं लेकिन नशा करने वालों व मादक पदार्थों की आपूर्ति करने वालों के बीच सीधा गठजोड पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ है।
नशाखोरी की मूल जडों पर भी पुलिस का प्रहार
विद्यार्थियों में नशे के विरूद्व जागरूकता हेतु शिविर
नशे की आदतों के शिकार हो चुके लोगों को नशा मुक्ति की ओर अग्रसर करना ही जिला पुलिस ने पर्याप्त नहीं समझा। जब पुलिस अधिकारियों ने देखा कि उच्च प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के विधार्थी भी नशे की लत के शिकार होते जा रहे ह तो पुलिस ने गत दिनों तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता व वर्तमान पुलिस अधीक्षक रूपिन्दर सिंह के मार्गदर्शन में इस केन्द्र ने विधार्थियों को नशे की प्रवृति से बचाने के लिए अवेयरनेस कैम्प लगाने श्शुरू किये। इन शिविरों में छोटे-कस्ब, गांवों, ढाणियों व शहरों में मोहल्लों में विधार्थिया, उनके परिजनों व नागरिकों व ग्रामीणों को ईकठा कर उन्हें नशा क्या है, इसके नुकसान क्या है व इससे बचाव के क्या उपाय है, व नशे के बारे में उनमें व्याप्त गलत फहमियों आदि के बारे में जागरूक बनाया जाता है। साथ ही इन सब को आजीवन नशे की लत से बचे रहने की शपथ बहुत ही सकारात्मक मार्गदर्शन के साथ दिलवायी जाती है। गत ढाई वर्ष से चल रहे इस अभिनव प्रयोग के भी अनेक सार्थक प्रभाव सामने आये हैं व जनता की सहभागिता बढी है। इस अभियान में शिक्षा विभाग के सहयोग से अभी तक एक लाख बच्चों को नशा मुक्ति के विरूद्व जागरूक किया जा चुका है। नशा मुक्ति शिविरों हेतु श्शुरू से ही अपनी सर्मपित सेवाएं देने वाले व नशा मुक्ति केन्द्र के प्रभारी डॉ. रविकान्त गोयल दिन-रात मेहनत कर जिला पुलिस के इस अभिनव अभियान को अनवरत् जारी रखे हुए हैं।
श्रीगंगानगर। कहते हैं कि जहाँ धन, सम्पदा एकत्रित होती है तो वह कुछ बुराईयां भी अपने साथ लाती है। कुछ ऐसा ही हुआ है राजस्थान के सबसे अधिक राजस्व आय वाले कृषि प्रधान जिले गंगा नगर में। गत वर्षों में ज्यों-ज्यों इस जिले ने शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में तरक्की की रफतार पकडी त्यों-त्यों जिले के सभी आयु वर्ग के लोगों में नशीले पदार्थों यथा गांजा, चरस, पोस्त, शराब, गुटखा, जर्दा, व नशीली दवाईयों जैसे गोलियां कैप्सूल और कफ सिरप व यहाँ तक कि व्हाईट फल्यूइड का इस्तेमाल नशे के विकल्प के रूप बढता गया है। हालात यह है कि आज हजारों घरों के लाखों युवक, युवतिया व स्कूलों में पढने वाले विधार्थियों के चोरी छिपे नशे के आदी होने के कारण परिवारों में अनेक प्रकार की समस्याएं व विवाद बढते जा रहे हैं। नशे की इस बढती प्रवृति से युवाओं में उच्छखंलता व उन्माद बढा है। नशे की प्रवृति के चलते अनेक युवा अपना बेशकीमती जीवन गंवा चुके हैं व हजारों परिवार बर्बादी की राह पर है। अनेक घरों में जहाँ बुढे माँ-बाप का एक ही नौजवान सहारा है वह भी नशे की लत के चलते जीवन को तबाह करने से नहीं चूक रहा है। जिले के युवाओं की हालत ऐसी खराब हो चली है कि वे किसी की सुनने को ही तैयार नहीं है।
क्यों करते हैं नशा
इस क्षेत्र में नशाखोरी के शिकार लोगों में एक आम धारणा व्याप्त है कि इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्वि होती है व नशा करने के बाद वे तनाव मुक्त महसूस करते है इसके अलावा अधिकांश नशाखोर लोगों का मानना है कि इससे उन्ह एक अलग तरह के आनंद की प्राप्ति होती है।इसके अलावा इस जिले के लोगों के सामाजिक, आर्थिक रिश्ते पंजाब के लोगों की जीवन शैली से भी प्रभावित है। पंजाब में शराब, पोस्त आदि को बुरी लत नहीं माना जाता व इन चीजों का सेवन वहाँ अधिकांश लोग अपने बच्चों व बडों के सामने करते हैं। बच्चे कतुहलवश व अज्ञानतावश भी नशे की आदतों के शिकार हो जाते हैं। इस परिवेश का फैलाव इस जिले में भी हो गया है रही सही कसर जिले में छायी पॉप संस्कृति ने पूरी कर दी है आम तौर पर जिले में होने वाली शादिय, समारोहों व अन्य पार्टियों में शराब व अन्य नशे की चीजो का खुल कर इस्तेमाल होता है।
जिले की सीमा पाकिस्तान से लगी होने के कारण भी मादक पदार्थों के अवैध कारोबारी तस्करी कर इन चीजों की आपूर्ति अपने गुर्गों के माध्यम से करते हैं। इसके अलावा बच्चों व युवाओं में शराबखोरी व अन्य नशे की चीजों के सेवन के पीछे कारण उनके माँ-बाप या अन्य परिजन भी हैं क्योंकि जब इस आयु वर्ग के लोग अपने परिजनों, सगे-सम्बधियों को नशे की चीजों का सेवन करत हुए देखते हैं तो धीरे-धीरे वे भी इन चीजों के सेवन के शौकीन हो जाते हैं। जब वे नशे के आदी हो जाते हैं तो वे अनुचित योन व्यवहारों में भी श्शरीक होने लगते है। नीम-हकीम भी इन नशे के आदियों व युवाओं को पौरूष बढाने के नाम पर नशे की चीजें परोसते हैं। नशे की प्रवुति के शिकार लोगों में 4॰ पतिशत से अधिक लोग 16 वर्ष से उपर की आयु के हैं। सुत्र बताते हैं कि इस आयु के लोग जिले के विभिन्न साईबर कैफे व अन्य सुत्रों से अश्लील फिल्में देखते हैं व उन्मुक्त यौन व्यवहार को बढावा देने वाला साहित्य पढते हैं। इन सब से जागृत कुंठाओं की पूर्ति के लिए भी युवा पीढी नशे का शिकार हो रही है।
जिले की भौगोलिक परिस्थितियां
श्रीगंगानगर जिले की भौगोलिक परिस्थिति कुछ ऐसी है कि यह नशीली वस्तुओं के अवैध कारोबारियों, तस्करों के लिए एक महफूज जगह बन गया है। जिले की एक सीमा पाकिस्तान से लगती है तो दूसरी सीमा पजांब से लगती है। इस कारण इस जिले में पाकिस्तान व पंजाब के रास्ते से होकर अनेक प्रकार के मादक पदार्थ युवाओं के हाथ में बेरोक-टोक पहच रहे हैं।
जिला पुलिस के सराहनीय कदम
परन्तु जिला पुलिस ने भी नशे की इस बुराई से जुझने व युवक-युवतियों को नशे की लत से छुटकारा दिला कर फिर से हँसता-खेलता सामान्य जीवन जीने की राह दिखाने के लिए सन् 1992 से कमर कस रखी है। जिला पुलिस ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से एक विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ॰ रविकान्त गोयल की सेवाएं लेकर एक नशा मुक्ति केन्द्र चला रखा है। डॉ॰ रविकान्त गोयल ने तो मानों इन नशा मुक्ति शिविरों को जीवन का एक अभिन्न अंग ही बना लिया है। जिले के नागरिकों के दर्द को उन्होंने अपने सीने से लगा रखा है व वे हमेशा ऐसे शिविरों की रूपरेखा में ही व्यस्त रहते हैं। इस केन्द्र के अधीन जिला पुलिस के सभी छोटे-बडे अधिकारियों ने एकदम सकारात्मक भाव के साथ समर्पित होकर अभी तक 1॰ दिवसीय 38 आवासीय कैम्प लगाये हैं जो कि एक मिसाल है।
इन आवासीय नशामुक्ति शिविरों का आयोजन पुलिस अधिकारी व कर्मचारी व अन्य विभागों के अधिकारी जन सहयोग से करते हैं। नशे के आदी लोगों को 1॰ दिन तक केन्द्र में उपाचाराधीन रखा जाता है। इस शिविर में आने वालों के आवास व भोजन की व्यवस्था केन्द्र द्वारा जन सहयोग से की जाती है ं। अभी तक 4॰, ॰॰॰ से अधिक युवक, युवतियां व अन्य आयु वर्ग के लोग इन शिविरों से लाभ उठा चुके हैं। जिले में जो भी पुलिस अधीक्षक आये, सभी ने इस जिले को नशामुक्त बनाने के लिए दिल से प्रयास किये व हजारों लोगों की जिन्दगी व उनके परिजनों को फिर से आशा की किरण दिखाई है।
चाहे वे सुधीर प्रताप सिंह, लक्ष्मण मीणा, के.नरसिंहराव, वी.के. गोदिका, आलोक त्रिपाठी, रवि प्रकाश मेहरडा, आर.पी. सिंह, चुन्नी लाल, यू.आर साहू, सुनील दत्त, सौरभ वास्तव, विनिता ठाकुर, आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता या वर्तमान में पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थापित रूपिन्द्र सिंह हों सभी ने नशे जैसी बुराई से लडने में कोई कसर नहीं छोडी। जिला पुलिस के इस अभिनव प्रयत्न में क्षेत्र के सभी वर्गों की जन सहभागीदारी भी प्रशंसनीय है। पुलिस अधिकारियों व जनता की भागीदारी से श्मात्र शिविरों से श्शुरू हुआ यह अभियान एक बडा रूप ले चुका है। 1996 में जब के. नरसिंहराव जिले के पुलिस अधीक्षक थे, तब उनके प्रयासों से स्थायी नशा मुक्ति केन्द्र की स्थापना की गई।
यधपि जिला पुलिस ने समय-समय पर अनेक बार सघन अभियान चला कर नशाीली दवाएं व अन्य मादक पदार्थ इनके अवैध कारोबारियों से बरामद किये हैं लेकिन नशा करने वालों व मादक पदार्थों की आपूर्ति करने वालों के बीच सीधा गठजोड पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ है।
नशाखोरी की मूल जडों पर भी पुलिस का प्रहार
विद्यार्थियों में नशे के विरूद्व जागरूकता हेतु शिविर
नशे की आदतों के शिकार हो चुके लोगों को नशा मुक्ति की ओर अग्रसर करना ही जिला पुलिस ने पर्याप्त नहीं समझा। जब पुलिस अधिकारियों ने देखा कि उच्च प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के विधार्थी भी नशे की लत के शिकार होते जा रहे ह तो पुलिस ने गत दिनों तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आलोक वशिष्ठ, उमेश चन्द्र दत्ता व वर्तमान पुलिस अधीक्षक रूपिन्दर सिंह के मार्गदर्शन में इस केन्द्र ने विधार्थियों को नशे की प्रवृति से बचाने के लिए अवेयरनेस कैम्प लगाने श्शुरू किये। इन शिविरों में छोटे-कस्ब, गांवों, ढाणियों व शहरों में मोहल्लों में विधार्थिया, उनके परिजनों व नागरिकों व ग्रामीणों को ईकठा कर उन्हें नशा क्या है, इसके नुकसान क्या है व इससे बचाव के क्या उपाय है, व नशे के बारे में उनमें व्याप्त गलत फहमियों आदि के बारे में जागरूक बनाया जाता है। साथ ही इन सब को आजीवन नशे की लत से बचे रहने की शपथ बहुत ही सकारात्मक मार्गदर्शन के साथ दिलवायी जाती है। गत ढाई वर्ष से चल रहे इस अभिनव प्रयोग के भी अनेक सार्थक प्रभाव सामने आये हैं व जनता की सहभागिता बढी है। इस अभियान में शिक्षा विभाग के सहयोग से अभी तक एक लाख बच्चों को नशा मुक्ति के विरूद्व जागरूक किया जा चुका है। नशा मुक्ति शिविरों हेतु श्शुरू से ही अपनी सर्मपित सेवाएं देने वाले व नशा मुक्ति केन्द्र के प्रभारी डॉ. रविकान्त गोयल दिन-रात मेहनत कर जिला पुलिस के इस अभिनव अभियान को अनवरत् जारी रखे हुए हैं।
मोती लाल वर्मा
(प्रचार) पुलिस मुख्यालय, जयपुर।
बुधवार, 12 मई 2010
दूध दही के प्रदेश में शराब की नदियां
एक साल में 10 लाख प्रूफ लीटर बढ गया सिरसा का कोटा
- राजेन्द्र गुप्ता -
सिरसा, 12 मई। देसां मा देस हरियाणा, जित दूध दही का खाणा। हरियाणा की यह पारंपरिक कहावत और संस्कृति रही है। हमारे यहां दूध-दही का खाना देहात और शहर का प्रतीक माना जाता था लेकिन बदलते समय के साथ दूध दही का खाना तबदील होता जा रहा है।
हालात यह हैं कि अखाडों में पहलवानी करने वाले हरियाणवी नौजवान नशों की गिरफ्त में फंसते चले जा रहे हैं। दूध का स्थान दारू ने ले लिया है। पहले जहां शराब के अहातों की तरफ लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे, उन्हीं अहातों में अब अच्छे-अच्छे घरों के फरजंद टोलियां बनाकर बैठे आम देखे जा सकते हैं। यही स्थिति साथ लगते राज्य पंजाब की भी है। पिछले 5 वर्षों से जिस ढंग से शराब के ठेके और अहातों की संख्या बढी है और शराब की आपूर्ति का स्तर बढा है वह चौंकाने वाला है। ठीक वैसा ही जैसा दूध की कम होती खपत का तथ्य। घरों में दूध पीने का प्रचलन समाप्त होता जा रहा है।
हालात यह हैं कि सिरसा जिला में अंग्रेजी शराब का जो कोटा पिछले साल 1 लाख 91 हजार 227 प्रूफ लीटर था वह इस साल बढकर 11 लाख 21 हजार 514 प्रूफ लीटर तक पहुंच गया है। इसी तरह देसी शराब का कोटा भी पिछले साल के मुकाबले बढा है। बीयर की बिक्री भी गर्मी के मौसम में काफी बढी है। हर रोज लगभग 1॰ हजार बीयर की बोतलें प्रयोग होती हैं। पहले जहां शराब में मिलावट की खबरें आती थीं लेकिन चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि बीयर में भी मिलावट करके बेचा जा रहा है। एक तरफ शराब के रेटों में इजाफा और दूसरी तरफ अहातों पर लूट। युवा वर्ग बिना किसी रोजगार के शराब पर जब पैसा लुटाएगा तो उसका हश्र आपराधिक घटनाओं की वृद्धि के साथ ही जोडकर देखा जा सकता है।
अभी पिछले दिनों पंजाब सरकार ने विधानसभा में नियम पास करके 21 साल से कम आयु के किशोरों को शराब बेचने या पिलाने पर प्रतिबंध लगाया है। सरकार की यह चिंता पंजाब में बढ रही नशाखोरी की ओर इंगित करती है जहां कम आयु के किशोर शराब के नशे की दलदल में फंसे हुए हैं। शराबनोशी की घटनाओं के बढने के साथ ही गांवों में कच्ची शराब निकालने का धंधा भी बडे पैमाने पर फल-फूल रहा है। सिरसा जिला के रोडी व कालांवाली क्षेत्र सहित पूरे जिला में कच्ची शराब बडे पैमाने पर निकाली जाती है। ऐसे तस्करों के आगे पुलिस का नेटवर्क भी विफल दिखाई देता है। पुलिस कागज पूरे करने के लिए दो-चार लोगों से कुछ बोतल शराब पकडकर बेशक अपनी पीठ थपथपा लेती हो लेकिन हकीकतन शराब की तस्करी को रोक पाना पुलिस के लिए भी टेढी खीर है।
हरियाणा में इन दिनों निकाय चुनाव शबाब पर हैं। चुनावों में मतदाताओं को रिझाने के लिए खूब शराब परोसी जा रही है। यद्यपि प्रशासन ने दो दिन तक ठेके बंद रखने के निर्देश दे दिए हों लेकिन उम्मीदवारों ने तो पहले ही अपने अपने हिस्से के कोटे खरीदकर पूरी तैयारी की हुई है। मुफ्त में शराब मिलने के कारण युवा वर्ग में इसके प्रति रुझान बढा है। देर रात तक लोग शराब के नशे में सडकों पर घूमते आम दिखाई देते हैं। हाल ही में शराब के अधिक सेवन से एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी है लेकिन प्रशासन और पुलिस इसे संज्ञान में नहीं ले रहे। संभ्रांत लोगों का कहना है कि जिस तरह से पंजाब सरकार ने युवाओं में शराबखोरी रोकने के लिए कानून लागू किया है वैसे ही हरियाणा सरकार को भी निर्णय लेना चाहिए ताकि युवा पथभ्रष्ट न हो सकें और वे अपने भविष्य के प्रति गंभीर हों।
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
शिकारियों के मुंह का निवाला बनते वन्य जीव
- सचिन बंसल/सुभाष गुप्ता -
हनुमानगढ, 25 अप्रैल। ‘‘भूरे रंग के मासूम हरिण के पीछे खुंखार कुत्ते लगे हैं। वह बदहवास हालत में जान बचाने के लिए खेतों में दौडता जा रहा हैं, लेकिन कुत्तें ज्यादा फुर्तिले निकलते हैं। इसी दौरान कुत्तों का मालिक वहां पहुंच कर धारदार हथियार के एक ही वार से हरिण की गर्दन धड से अलग कर देता हैं।’’ ऐसे दृश्य हनुमानगढ जिले के विभिन्न खेतों में आम तौर पर देखने को मिल जाते हैं। खेतों में विचरण करने वाले हरिण तथा अन्य वन्य जीवों कों इधर इसी तरह से मारा जा रहा हैं। लगातार हो रहे शिकार की वजह से क्षेत्र में इन वन्य जीवों की तादाद लगातार घटती जा रही हैं।

इस क्षेत्र में नहरें आने के साथ खुशहाली आई तो साथ-साथ व्यसन भी बढे। मांस और मदिरा का चलन तो अब घर-घर हो गया। मांसाहारी लोग नित नए लजीज गोश्त की तलाश में रहने लगे। गांवों के बडे किसानों की लाइसेंसी/गैर लाइसेंसी बंदूके इन जीवों का सीना छलनी करने लगी। क्षेत्र में तीतर, खरगोश वगैरह का शिकार तो धडल्ले से होता ही हैं, सम्पन्न परिवारों के लोग हरिणों को मारकर खाने में कुछ ज्यादा ही रूचि लेते हैं। बंदूक की गोली हरिण पर चलाने से परहेज तो नहीं, लेकिन जब पालतू कुत्ते ही बंदूक का काम कर दें तो गोली जाया करना शिकार के ये शौकीन पसंद नहीं करते।
ग्रामीण क्षेत्रों में अपने मालिक के लिए हरिण को मार देने का काम कुत्ते बखूबी कर देते हैं और किसी के ऊपर शिकार का आरोप भी आमद नहीं होता। गत दिवस एक गांव में एक हरिण का शिकार इसी तरीके से किया गया। वन विभाग को इस बारे में पूरी जानकारी हैं, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहा।
वन्य जीवों के शिकार की ताजा घटनाओं को देखे तो गत दिवस ही जिले के भिरानी थाना क्षेत्र में हरिण का, आठ एसपीडी में खरगोश का शिकार हुआ। इसके अलावा बीते वर्ष की बात करें तो सरदारपुर खालसा में एक साथ पांच मोरों का शिकार किया गया। इसके अलावा हरिण, खरगोश, नीलगाय के शिकार कई मामले थे। इन मामलों में ये वन्य जीव शिकारियों के हाथों मौत का शिकार हो गये, लेकिन बिश्ा*ोई समाज के लोगों की जागरूकता के कारण शिकारी इन वन्य जीवों को अपना निवाला नहीं बना सके तथा उनके खिलाफ मुकदमें भी दर्ज करवाए गए।
हनुमानगढ जिले में विभिन्न स्थानों पर गीदड, नीलगाय, सुअर, खरगोश, हरिण आदि वन्य जीव सैंकडों की तादाद में हैं। पक्षियों में मोर, तीतर, सैह, बगुला व बतख वगैरह पाए जाते हैं। इसके अलावा सांप और नेवले, गोह का शिकार करने से भी नहीं चुकते। संरक्षित क्षेत्र के अभाव में ये सभी पशु-पक्षी खुले खेतों में विचरण करते हैं और शिकारियों केहाथों शिकार हो रहे हैं। हनुमानगढ जिले में कैंचियां, लखासर, हरदयालपुरा, लिखमीसर, बिलौचावाली, गोलूवाला, जाखडांवाली, लुढाणा, रावतसर चोहिलांवाली, मैनावाली, गिलवाला, किशनपुरा उत्तरादा आदि स्थानों पर ये वन्य जीव पाए जाते हैं। हरिणों कें अलावा सबसे अधिक मौत की तलवार खरगोश और तीतरों पर लटकी रहती हैं। सैंकडों तीतर और खरगोशों को तकरीबन रोज मारकर निवाला बना लिया जाता हैं। खरगोश को एक विशेष प्रकार के लोहे के शिकंजे में फांसा जाता हैं। खेतों और झाडियों के इर्द-गिर्द ये शिकजें डाल दिए जाते हैं। रात के अंधेरे में जैसे ही खरगोश बिलों से बाहर निकलते हैं, इन शिकजों में उनकी टांगे फंसकर टूट जाती हैं। सुबह शिकारी उन्हें पकडकर मौत के घाट उतार देते हैं। शिकारी इन जीवों को पकडने के लिए करका, टोपीदार बंदूक, जहरीला दाना, गुलेल के अलावा शिकारी कुत्तों का इस्तेमाल करते हैं।
क्षेत्र में तीतर का शिकार भी बहुतायत से होता हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ जाति विशेष के लोग रोजाना बडी तादाद में तीतरों का शिकार करते हैं। वन विभाग के मापदंडों के अनुरूप वन्य जीवों की गणना जिस प्रकार वन्य प्राणियों के लिए संरक्षित क्षेत्रों में होती हैं, उस तरह से इस क्षेत्र में इन निरीह प्राणीयों की गणना भी वन विभाग उजागर नहीं करता। कभी हनुमानगढ में सियार, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सुअर, लोमडी, बंद तथा हरिण काफी संख्या में पाए जाते थे, लेकिन बढते शिकार के कारण आज इनमें से कई तो लुप्तप्रायः हो गये हैं तथा कुछ होने को हैं।
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